मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है ..
कागज की हवेली है , बारिश का ज़माना है ..
क्या शर्त -ए -मोहब्बत है , क्या शर्त -ए -ज़माना है ..
आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है ..
उस पैर उतरने की उम्मीद बहुत कम है ..
कश्ती भी पुरानी है , तूफ़ान भी आना है ..
समझे या न समझे वो अंदाज़ -ए -मोहब्बत का ..
भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाना है ..
भोली सी अदा , कोई फिर इश्क की जिद पर है ..
फिर आग का दरिया है .. और डूब ही जाना है …
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उठो रे मुसाफिर भोर हुआ है , गाड़ी आने वाली है ! जिस गाड़ी का टिकट कटाया , गाड़ी जाने वाली है !
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