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बुधवार, 19 जनवरी 2011

ख्वावों का जमीनी सच...

मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता सा लगा
मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगा

धूप आयी तो हवा का दम निकलता सा लगा
और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगा

झूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया
सच का सूरज झूठ के पाँवों  पे चलता सा लगा

मेरे ख्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी
आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगा 


                                              -Sanjay Grover

1 टिप्पणी:

  1. यह ग़ज़ल मेरी है पर आपने यहां मेरा नाम नहीं दिया है। यह अनुचित है। या तो यहां मेरा नाम दें या इसे हटा दें। मेरा ईमेंल है:samvadoffbeat@yahoo.co.in

    -संजय ग्रोवर

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