मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता सा लगा
मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगा
मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगा
धूप आयी तो हवा का दम निकलता सा लगा
और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगा
और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगा
झूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया
सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता सा लगा
सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता सा लगा
मेरे ख्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी
आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगा
-Sanjay Grover
आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगा
-Sanjay Grover
यह ग़ज़ल मेरी है पर आपने यहां मेरा नाम नहीं दिया है। यह अनुचित है। या तो यहां मेरा नाम दें या इसे हटा दें। मेरा ईमेंल है:samvadoffbeat@yahoo.co.in
जवाब देंहटाएं-संजय ग्रोवर