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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

दास्ताँ-ए-मोहब्बत .....

मासूम  सी  मोहब्बत  का  बस  इतना  सा  फ़साना  है ..
कागज  की  हवेली  है , बारिश  का  ज़माना  है ..
क्या  शर्त -ए -मोहब्बत  है , क्या  शर्त -ए -ज़माना  है ..
आवाज़  भी  जख्मी  है  और  वो  गीत  भी  गाना  है ..
उस  पैर  उतरने  की  उम्मीद  बहुत  कम  है ..
कश्ती  भी  पुरानी  है , तूफ़ान  भी  आना  है ..
समझे  या  न  समझे  वो  अंदाज़ -ए -मोहब्बत  का ..
भीगी  हुई  आँखों  से  एक  शेर  सुनाना  है ..
भोली  सी  अदा , कोई  फिर  इश्क  की  जिद  पर  है ..
फिर  आग  का  दरिया  है .. और  डूब  ही  जाना  है  …

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