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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

दास्तान -ए जिंदगी.......

 दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो
जिन्दा हो तुम,
नज़रों में अपनी ख्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे
हो तो जिन्दा हो तुम |
हवा के झोकों के जैसे आजाद रहना सीखो ,
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो |
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें ,
हर एक पल एक नया शमां देखे ये निगाहें |
जो अपनी आखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो तो
ज़िंदा हो तुम ,
दिलों में अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो तो जिन्दा
हो तुम ||
                           JNMD

बुधवार, 20 जुलाई 2011

Random

उठो रे मुसाफिर भोर हुआ है ,
गाड़ी आने वाली है !
जिस गाड़ी का टिकट कटाया ,
गाड़ी जाने वाली है !

गुरुवार, 30 जून 2011

एक एहसास ......

पतरे ही बाँसवा के बनली पलंगिया,
उपरा से ललका ओहार हो |
धीरे धीरे डोलिया उठैहा कहारवा,
टूटे ना अलान्गिया हमार हो |

मंगलवार, 3 मई 2011

FREEDOM IS …


Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;
Where words come out from depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit………..
From GITANJLI……….
                                “Ravindra Nath Tagore”

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

स्वेद की बूंद

स्वेद की बूंदें,
यूँ टिकी थी माथे पर,
स्वर्णिम श्रृंगार हुआ हो जैसे|
सूरज की किरणे भी,
ढूंढ़ती हों  जैसे,
अपना बिम्ब उन्हीं  में|
हवा थी कुछ मंद सी,
और खेलती थी उन बूंदों से,
खेल लुका छिपी  का|
बनती बूंदों  को मिटाना,
फिर बनते देखना,
उन स्वर्णिम स्वेद बूंदों को|
कभी बादल भी आ जाते,
हवा के साथ और तब,
मचल सी उठती किरणे,
खोता देख अपना इन्द्रधनुष|
पर इन सबसे बेखबर,
वह तो थी मगन,
लगन से जतन से,
अपने श्रम में|
हाँ कभी कभी,
निहार लेती थी,
अपने दुधमुहे बच्चे को,
खेल जो रहा था वहीँ,
पास क्रेन की छाँव में|

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

madhulika: ज़िन्दगी.......

madhulika: ज़िन्दगी.......: "अधूरे मिलन की आस है ज़िन्दगी . सुख -दुःख का एहसास है ज़िन्दगी .. फुर्सत मिले&nbs..."